यह रही “ईश्वर का वरदान” नामक अकबर और बीरबल की एक प्रेरणादायक कहानी:
ईश्वर का वरदान
एक बार बादशाह अकबर और बीरबल के बीच यह चर्चा चल रही थी कि ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान क्या है। अकबर का मानना था कि धन और शक्ति ही ईश्वर के सबसे बड़े वरदान हैं। यदि किसी के पास बहुत सारा धन और शक्ति हो, तो वह संसार में कुछ भी कर सकता है।
बीरबल ने अपनी बात रखते हुए कहा, “जहांपनाह, धन और शक्ति जरूरी हैं, लेकिन ये ईश्वर के सबसे बड़े वरदान नहीं हैं। ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है—संतोष।”
अकबर बीरबल की इस बात से सहमत नहीं हुए और बोले, “बीरबल, तुम्हें कैसे लगता है कि संतोष धन और शक्ति से बड़ा वरदान है? तुम इसे सिद्ध करके दिखाओ।”
बीरबल ने कहा, “जहांपनाह, मैं इसे सिद्ध करूंगा, लेकिन इसके लिए मुझे कुछ समय चाहिए।”
कुछ दिनों बाद बीरबल एक गरीब व्यक्ति को लेकर दरबार में आए। वह व्यक्ति बहुत खुश और संतुष्ट लग रहा था, भले ही उसके पास पहनने के लिए साधारण कपड़े और खाने के लिए साधारण भोजन था। बीरबल ने अकबर से कहा, “महाराज, यह व्यक्ति एक सामान्य गरीब है, लेकिन इसके चेहरे पर देखिए कितनी खुशी है।”
अकबर ने उस गरीब व्यक्ति से पूछा, “तुम्हारे पास तो ज्यादा कुछ भी नहीं है, फिर भी तुम इतने खुश क्यों हो?”
गरीब व्यक्ति ने मुस्कुराते हुए कहा, “महाराज, मेरे पास जो कुछ भी है, उसी में मैं खुश हूँ। मुझे ईश्वर ने स्वस्थ शरीर और काम करने की क्षमता दी है। मुझे जो मिलता है, उसी में संतुष्ट रहता हूँ। यही मेरे लिए ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है।”
फिर बीरबल ने अकबर से कहा, “जहांपनाह, यह वही संतोष है जिसकी मैं बात कर रहा था। इस गरीब व्यक्ति के पास धन नहीं है, न ही कोई शक्ति, फिर भी यह खुश है क्योंकि इसके पास संतोष का वरदान है। इसे किसी भी तरह की लालसा नहीं है, और यही इसकी खुशी का कारण है।”
अकबर ने बीरबल की बात को समझा और कहा, “बीरबल, तुमने मुझे सिखाया है कि ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान संतोष ही है। अगर किसी के पास संतोष है, तो वह सच्चे अर्थों में सबसे धनवान और शक्तिशाली है।”
इस प्रकार, बीरबल ने अपनी बुद्धिमत्ता से सिद्ध कर दिया कि संतोष ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है, जो हमें सच्ची खुशी और मानसिक शांति प्रदान करता है।